मेरी माँ
"माँ" एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते है ही हमारा मन शांत और प्रफुल्लित हो जाता है। माँ के वात्सल्य का कोई अंत ही नहीं, जिसके प्रेम की कोई सीमा ही नहीं, जिसकी गोद में पूरे ब्रह्मांड का सुख है।
सचमुच, माँ प्रेम की प्रतिमा है। वह सुबह से शाम तक पूरे परिवार की चिंता और उसकी देखरेख में लीन रहती है। उसके लिए जीवन में आराम शब्द है ही नहीं। वो दुःखी होकर सबको ख़ुश रखती है। फ़िर भी उसके चेहरे पर खुशी हमेंशा बनी रहती है।
घर को जैसे वो स्वर्ग बनाए रखती है। पूरे घर की छोटी छोटी बात पर उसकी नज़र रहती है। अगर हमसे कोई ग़लती हो जाती है तो माँ हमें डांटती जरूर है लेकिन मन ही मन वो बहुत परेशान रहती है। फ़िर हम डांट की वजह से नाराज़ हो जाते है और खाना नहीं खाते लेकिन वो हमें प्यार से समझाकर खाना खिलाती है। आप एक बात पर ध्यान देना जब परिवार के सब लोग खाना खा लेते है उसके बाद ही वो खाने के लिए बैठेगी। अरे! यही तो है एक माँ का प्रेम हमें भोजन करते देख ही उसका पेट भर जाता है। अगर गलती से भी हमने बड़ी भूल कर दी और पापा की नज़र मे आ गए तो फ़िर तो गए समजो फ़िर भी उनकी डांट से माँ ही बचाती है।
माँ का प्रेम स्वभाविक होता है। पशु पक्षियों और प्राणियों में भी माँ का प्रेम अपार होता है। बंदरिया कैसे अपने बच्चे को पेट से चिपकाकर रखती है। बिल्ली जैसे प्राणी अपने बच्चों को मुह में दबोचकर सुरक्षित स्थान पर रखते है लेकिन उन्हें एक भी खरोच नहीं आने देते। यही तो है माँ की ममता।
माँ का प्यार:
मातृप्रेम की तुलना में संसार के सारे प्रेम और संबंध फ़ीके पड़ जाते है। जब हम बीमार पड़ते है तब माँ हमारी सेवा ऐसे करती है की हमें कभी कभी तो डॉक्टर की जरूरत ही नहीं पड़ती। पुरा दिन हमें संभालती और हमारे माथे को दबाती रहती है। कई बच्चे तो अपाहिज, मंदबुध्धि और मुर्ख , निकम्मे तथा अँधे और गुँगे होते है फ़िर भी माँ उन्हें स्वीकार लेती है और उनकी सेवा उसी भावना और प्रेम से करती हैं जैसे वो एक अच्छे बच्चे की सेवा करती है।
माँ हमेशा अपने बच्चे की तरक्की देखना चाहती है। वो ख़ुद तो पढ़ी लिखी नहीं होती, यातो कम पढ़ी होती है फ़िर भी वो अपने बच्चे को बहुत पढ़ाना चाहती है।
मेरी प्रिय ऋतु निबंध : Read more
हम जब बहार से खेल के या फ़िर स्कूल कॉलेज से जैसे ही घर आते है तो हमारी नजरे माँ को ही ढूँढती है और जब तक वो नज़र नहीं आती मन को चैन नहीं मिलता। हम सबको पूछते है माँ को देखा-माँ को देखा और जैसे ही माँ नज़र आ जाती है फ़िर जो मन को खुशी मिलती है वो खुशी पूरे संसार में कही नहीं मिलती।
माँ के नि:स्वार्थ और स्वाभाविक प्रेम से बच्चे मे अनेक सदगुण और संस्कारों का विकास होता है। एक माँ का प्रेम ही अपने बालक को सच्चा और सफ़ल इंसान बना सकता है। लेकिन फ़िर भी कई बच्चे होते है जो माँ के प्रेम को भूल जाते है और उन्हें बुढ़ापे में जो प्रेम देना चाहिए वो नहीं दे पाते। इसीलिए आज हमारे देश में वृध्दाश्रम बढ़ गए है।
Read more: समुद्र के किनारे एक शाम- निबंध
वो कहते है ना की पुत्र कपुत्र बन सकता है, लेकिन माँ कभी कुमाता नहीं बन सकती है।
हम जो भी जीवन में सफ़लता पाते है वो हमारे माँ- बाप की बदोलत पाते है। संसार में ऐसा कोई नहीं जो माँ की सेवा, त्याग और प्रेम के ऋण को चुका सके। फ़िर भी मै अपने माँ बाप की सेवा ऐसी करूँगा की उन्हें भी ये बोलने का मौका मिले की तेरे जैसा बेटा हर किसीको मिले।
I LOVE YOU MAA❤💯
पापा पर निबंध:Read more
"माँ" एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते है ही हमारा मन शांत और प्रफुल्लित हो जाता है। माँ के वात्सल्य का कोई अंत ही नहीं, जिसके प्रेम की कोई सीमा ही नहीं, जिसकी गोद में पूरे ब्रह्मांड का सुख है।
सचमुच, माँ प्रेम की प्रतिमा है। वह सुबह से शाम तक पूरे परिवार की चिंता और उसकी देखरेख में लीन रहती है। उसके लिए जीवन में आराम शब्द है ही नहीं। वो दुःखी होकर सबको ख़ुश रखती है। फ़िर भी उसके चेहरे पर खुशी हमेंशा बनी रहती है।
घर को जैसे वो स्वर्ग बनाए रखती है। पूरे घर की छोटी छोटी बात पर उसकी नज़र रहती है। अगर हमसे कोई ग़लती हो जाती है तो माँ हमें डांटती जरूर है लेकिन मन ही मन वो बहुत परेशान रहती है। फ़िर हम डांट की वजह से नाराज़ हो जाते है और खाना नहीं खाते लेकिन वो हमें प्यार से समझाकर खाना खिलाती है। आप एक बात पर ध्यान देना जब परिवार के सब लोग खाना खा लेते है उसके बाद ही वो खाने के लिए बैठेगी। अरे! यही तो है एक माँ का प्रेम हमें भोजन करते देख ही उसका पेट भर जाता है। अगर गलती से भी हमने बड़ी भूल कर दी और पापा की नज़र मे आ गए तो फ़िर तो गए समजो फ़िर भी उनकी डांट से माँ ही बचाती है।
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माँ का प्रेम स्वभाविक होता है। पशु पक्षियों और प्राणियों में भी माँ का प्रेम अपार होता है। बंदरिया कैसे अपने बच्चे को पेट से चिपकाकर रखती है। बिल्ली जैसे प्राणी अपने बच्चों को मुह में दबोचकर सुरक्षित स्थान पर रखते है लेकिन उन्हें एक भी खरोच नहीं आने देते। यही तो है माँ की ममता।
माँ का प्यार:
मातृप्रेम की तुलना में संसार के सारे प्रेम और संबंध फ़ीके पड़ जाते है। जब हम बीमार पड़ते है तब माँ हमारी सेवा ऐसे करती है की हमें कभी कभी तो डॉक्टर की जरूरत ही नहीं पड़ती। पुरा दिन हमें संभालती और हमारे माथे को दबाती रहती है। कई बच्चे तो अपाहिज, मंदबुध्धि और मुर्ख , निकम्मे तथा अँधे और गुँगे होते है फ़िर भी माँ उन्हें स्वीकार लेती है और उनकी सेवा उसी भावना और प्रेम से करती हैं जैसे वो एक अच्छे बच्चे की सेवा करती है।
माँ हमेशा अपने बच्चे की तरक्की देखना चाहती है। वो ख़ुद तो पढ़ी लिखी नहीं होती, यातो कम पढ़ी होती है फ़िर भी वो अपने बच्चे को बहुत पढ़ाना चाहती है।
मेरी प्रिय ऋतु निबंध : Read more
हम जब बहार से खेल के या फ़िर स्कूल कॉलेज से जैसे ही घर आते है तो हमारी नजरे माँ को ही ढूँढती है और जब तक वो नज़र नहीं आती मन को चैन नहीं मिलता। हम सबको पूछते है माँ को देखा-माँ को देखा और जैसे ही माँ नज़र आ जाती है फ़िर जो मन को खुशी मिलती है वो खुशी पूरे संसार में कही नहीं मिलती।
माँ के नि:स्वार्थ और स्वाभाविक प्रेम से बच्चे मे अनेक सदगुण और संस्कारों का विकास होता है। एक माँ का प्रेम ही अपने बालक को सच्चा और सफ़ल इंसान बना सकता है। लेकिन फ़िर भी कई बच्चे होते है जो माँ के प्रेम को भूल जाते है और उन्हें बुढ़ापे में जो प्रेम देना चाहिए वो नहीं दे पाते। इसीलिए आज हमारे देश में वृध्दाश्रम बढ़ गए है।
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वो कहते है ना की पुत्र कपुत्र बन सकता है, लेकिन माँ कभी कुमाता नहीं बन सकती है।
हम जो भी जीवन में सफ़लता पाते है वो हमारे माँ- बाप की बदोलत पाते है। संसार में ऐसा कोई नहीं जो माँ की सेवा, त्याग और प्रेम के ऋण को चुका सके। फ़िर भी मै अपने माँ बाप की सेवा ऐसी करूँगा की उन्हें भी ये बोलने का मौका मिले की तेरे जैसा बेटा हर किसीको मिले।
I LOVE YOU MAA❤💯
पापा पर निबंध:Read more
Thanks you sir for providing such a great article on essay on mother, i wrote this essay in the form of my homework.
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